खुली चोट
क्यों इस रात के बाद भी अँधेरा है घना,
क्यों दुश्मन इंसानियत का , ख़ुद इंसान है बना ।
पतला पानी से क्यों खून का रंग हो चला,
खो गया मै उस पल में जो था धुआं ।
जब खून उनका बर्फ सा था जमा ,
तो क्यों नही वो नेता , मेरा खुदा बना ।
दे गए ऐसा ज़ख्म, जो नासूर बन गया,
हर आह में था एक दर्द भरा ।
खरोंच भी न आने देती थी जो,
सामने उस माँ के बेटा था मरा ।
दिल जो दुआ करते थे , खैरियत की
क्यों उन दिलों से खुदा खफा रहा ।
तनहा इस भीड़ में इंसान है खडा,
ख़ुद दी हुई टीस से , तड़पता है पडा ।
देखता उस मंज़र को , सहमा हुआ सा मै रहा ,
क्यों दुश्मन इंसानियत का ख़ुद इंसान है बना ।
क्यों दुश्मन इंसानियत का ख़ुद इंसान है बना ।।
क्यों दुश्मन इंसानियत का ख़ुद इंसान है बना ।।
Vipin Juvenile.....