Monday, March 2, 2009

This poem is dedicated to those who lost their lives in mumbai 26-11 attack.....

खुली चोट
क्यों इस रात के बाद भी अँधेरा है घना,
क्यों दुश्मन इंसानियत का , ख़ुद इंसान है बना ।

पतला पानी से क्यों खून का रंग हो चला,
खो गया मै उस पल में जो था धुआं ।

जब खून उनका बर्फ सा था जमा ,
तो क्यों नही वो नेता , मेरा खुदा बना ।

दे गए ऐसा ज़ख्म, जो नासूर बन गया,
हर आह में था एक दर्द भरा ।

खरोंच भी न आने देती थी जो,
सामने उस माँ के बेटा था मरा ।

दिल जो दुआ करते थे , खैरियत की
क्यों उन दिलों से खुदा खफा रहा ।

तनहा इस भीड़ में इंसान है खडा,
ख़ुद दी हुई टीस से , तड़पता है पडा ।

देखता उस मंज़र को , सहमा हुआ सा मै रहा ,
क्यों दुश्मन इंसानियत का ख़ुद इंसान है बना ।
क्यों दुश्मन इंसानियत का ख़ुद इंसान है बना 
Vipin Juvenile.....